इस्लाम में महिलाओ के लिए अधिकार


इस्लाम महिलाओं को पुरुषों से अधिक अधिकार देता है – डॉक्टर लिसा (अमेरिकी नव मुस्लिम महिला)

मैंने तो जिस धर्म (इस्लाम) को स्वीकार किया है वह स्त्री को पुरुष से अधिक अधिकार देता है।
डॉक्टर लिसा एक अमेरिकी महिला डॉक्टर हैं, महिलाओं के अधिकार के संबंध में लगने वाले आरोपों का दान्दान शिकन जवाब देने के संबंध में काफी प्रसिद्ध हैं। 

 उदाहरण से समझ लीजिए
 पहली यह कि “इस्लाम ने मुझे चिंता आजीविका से मुक्त रखा है यह मेरे पति की जिम्मेदारी है कि वह मेरे सारे खर्च पूरे करे”, चिंता आजीविका से बड़ा कोई सांसारिक बोझ नहीं और अल्लाह हम महिलाओं को इससे पूरी तरह से मुक्ति रखा है, शादी से पहले यह हमारे पिता की जिम्मेदारी है और शादी के बाद हमारे पति की

 दूसरा उदाहरण यह है कि “अगर मेरी संपत्ति में निवेश या संपत्ति आदि हो तो इस्लाम कहता है कि यह सिर्फ तुम्हारा है तुम्हारे पति का इसमें कोई हिस्सा नहीं है”,
जबकि मेरे पति को इस्लाम कहता है कि “जो आप ने कमा और बचा रखा है यह सिर्फ तुम्हारा बल्कि तुम्हारी पत्नी का भी है अगर आप ने उसका यह हक़ अदा न किया तो मैं तुम्हें देख लूंगा।
 कुछ पति ये समझते की वो अपनी पत्नियों से ऊपर हैं जबकि इस्लाम ने इस रिश्ते को स्नेह और रहमत का रिश्ता बताया जिसमे ज़ुल्म की कोई जगह नहीं है क़ुरआन ने कहा की हमने तुम्हारे बीच में स्नेह और आकर्षण रखा है
 (सूरह 30: आयत 21). 

इस्लाम का सन्देश जब रसूल अल्लाह ने दिया तो अरब वालों ने आप पर इलज़ाम लगाया की ये धर्म औरतों को बहुत महत्व देता है और उन्हें फैसले का अधिकार देता है एक पुरुषप्रधान हुकूमत को ये मंज़ूर न हुआ आज उसी धर्म पर इलज़ाम लगता है की ये औरतों पर अन्याय करता है क्यूंकि मुसलमानों ने उस धर्म की शिस्क्षाओं को छोड़कर अपने नियम खुद तय करने शुरू कर दिए.

अल्लाह ने हर तरह के ज़ुल्म और ज़्यादती से इंसान को रोका और ईमान वालों से कहा की "तुम्हे किसी क़ौम की दुश्मनी न्याय करने से न रोके.." (सूरह 5:आयत 8) 

और लैंगिक भेदभाव के सम्बन्ध में कहा “और ख़ुदा ने जो तुममें से एक दूसरे पर तरजीह दी है उसकी हवस न करो मर्दो को अपने किए का हिस्सा है और औरतों को अपने किए का हिस्सा और ये और बात है कि तुम ख़ुदा से उसके फज़ल व करम की ख़्वाहिश करो ख़ुदा तो हर चीज़े से वाकि़फ़ है (सूरह 4: आयत 32)

 रसूल अल्लाह मुहम्मद (स अ) ने भी आखरी हज के ख़ुत्बे में कहा की सारी इंसानियत आदम और हव्वा से है और आगे जाकर कहा की तुममे छोटा या बड़ा अल्लाह की नज़र में सिर्फ अपने कर्मो के आधार पर बना जा सकता है.

इस्लाम ने हर एक को उसकी ज़िम्मेदारियों के बारे में बता दिया है ताकि हम एक बेहतरीन समाज बना सकें जो खुशियों से भरा हुआ हो और अन्याय के लिये उसमे कोई जगह न हो. नबी करीम ने कहा की “ए लोगों तुम्हारे अधिकार हैं अपनी पत्नियों पर और तुम्हारी पत्नियों के अधिकार हैं तुम पर याद रखो तुम हमेशा अपनी पत्नियों से नरमी का व्यवहार करना” आज के पतियों को ये बात पता होनी चाहिए और पत्नियों को भी ताकि जब कोई पति अपनी पत्नी पर कोई अन्याय करे तो पत्नियां उसे याद दिला सकें की प्यारे नबी ने हुक्म दिया था इससे घरेलु जीवन में खुशियां बनी रहेंगी जो की घरेलु हिंसा और डिप्रेशन जैसी बिमारियों की जड़ हैं. 
एक हदीस के अनुसार प्यारे नबी ने कहा की तुममे सबसे अच्छे वो हैं जो अपनी पत्नियों के साथ अच्छे हैं और तुममे अपनी पत्नियों के साथ सबसे अच्छा हूँ.

क़ुरआन ने कहा ”मर्द औरतों के समर्थक हैं “
(सूरह 4: आयत 34). 
और ये बताया भी तुम में से कोई किसी जगह ज़्यादा सामर्थ रखता तो दूसरा किसी और मैदान में. इस आयत को लोग पति और पत्नी के लिये समझते हैं जबकि सच्चाई ये है की आयात हर मर्द और औरत के लिये है क्यूंकि एक मर्द की ज़िम्मेदारी सिर्फ पत्नी ही नहीं बल्कि उसकी माँ बेहन और बेटी की तरफ भी होती है इसीलियें मर्द को इन सबका समर्थक बनाया गया है

मेरे इस ब्लॉग से किसीके दिल को ठेस पहुची हो तो में दिलसे माफ़ी मांगता हु, मेरा उद्देश्य किसी की भावनाओ को ठेस पहोचाना नहीं पर आप तक सच पहुचाना था, अगर कोई भूल हुई हो तो अपना छोटा भाई समजकर माफ़ कर देना.

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