नूरुद्दीन जंगी : नबी (स.अ.व) का जिस्म चोरी होने से बचाने वाले........

 PicsArt_07-25-12.58.00


 सुल्तान नूरुद्दीन जंगी ईशा की नमाज पढ़कर सो रहे थे कि अचानक उनकी नींद खुल गई और उठ कर बैठ गए। उनकी आंखों में आंसू थे कहने लगे मेरे होते हुए मेरे आका मेरे नबी सल्लल्लाहो वाले वसल्लम को कौन सता रहा है? आप उस ख्वाब के बारे में सोच रहे थे जो मुसलसल 3 दिन से उन्हें आ रहा था और फिर चंद लम्हो पहले उन्हें आया जिसमें सरकारे मदीना ने दो लोगों की तरफ इशारा करके बताया कि ये मुझे सता रहे हैं।

अब सुल्तान नूरुद्दीन जंगी को सुकून कहां था उन्होंने चंद साथियों और सिपाहियों को लेकर दमिश्क से मदीने जाने का इरादा किया। उस वक्त दमिश्क से मदीने का रास्ता 20 25 दिन का था, मगर आपने बगैर आराम किए यह रास्ता 17 दिन में तय कर लिया। मदीना पहुंचकर आपने मदीने आने वाले और जाने वाले तमाम रास्ते बंद करवा दिए और तमाम खास और आम को अपने साथ खाने पर बुलाया।

अब लोग आ रहे थे और जा रहे थे, आप सिर्फ उनके चेहरे को देखते, मगर आपको चेहरा नजर ना आया। अब सुल्तान को फिक्र हो गई और आपने मदीने के हाकिम से फरमाया कि क्या कोई ऐसा है जो इस दावत में शरीक़ ना हुआ जवाब मिला कि मदीने रहने वालों में तो कोई भी नहीं, हां मगर दो मगरिबी मुसाफिर हैं जो रोजा ए रसूल के करीब 1 मकान में रहते हैं। तमाम दिन इबादत करते हैं और शाम को जन्नतुल बकी में लोगों को पानी पिलाते हैं और यह लोग काफी वक्त से मदीने में रह रहे हैं।

सुल्तान ने उनसे मिलने की ख्वाहिश जताई दोनों मुसाफिर बज़ाहिर बहुत इबादत गुजार लगते थे। उनके घर में था ही क्या एक चटाई और कुछ जरूरत की चीजें।

एकदम से सुल्तान को चटाई के नीचे का फर्ज हिलता हुआ नजर आया। उसने चटाई हटाकर देखा तो वहां एक सुरंग थी आप ने सिपाही को सुरंग में उतरने का हुक्म दिया। वह सुरंग में दाखिल हुए और वापस आकर बताया कि यह सुरंग नबी ए पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कब्र मुबारक की तरफ जाती है।

यह सुनकर सुल्तान के चेहरे पर गुस्सा और गजब की कैफियत तारी हो गई। अपने दोनों मुसाफिरों से पूछा कि सच बताओ तुम लोग कौन हो?

काफी पूछने के बाद उन्होंने बताया कि वो नसरानी (ईसाई) हैं और अपनी कौम की तरफ से तुम्हारे पैगंबर के जिस्मे-अतहर (शरीर) को चोरी करने के लिए भेजे गए हैं। सुल्तान यह सुन कर रोने लगा और उसी वक्त दोनों की गर्दनें उड़ा दी गई।

सुल्तान रोते हुए जाते और कहते जाते कि "मेरा नसीब की पूरी दुनिया में इस खिदमत के लिए इस गुलाम को चुना गया"

ऐतिहासिक फैसला

इस नापाक साजिश के बाद जरूरी था कि ऐसी तमाम साजिशों को हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाए। सुल्तान ने इंजीनियर बुलाए और कब्र मुबारक के चारों तरफ खंदक खोदने का हुक्म दिया यहां तक कि पानी निकल आए। सुल्तान के हुक्म से वहां पर बड़ी खाई बना दी गई और उसमें पिघला हुआ शीशा भर दिया गया। शीशे की खंदक और खाई आज भी रोजा रसूल सल्लल्लाहो वाले वसल्लम के गिर्द मौजूद है।





follow us on social media












इस्लामिक इतिहास के बारे में बहेतरीन किताबे:



    
Previous Post Next Post