मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) का पूरा नाम इमाद-उद-दीन मुहम्मद बिन क़ासिम बिन युसूफ़ सकाफ़ी था। वह इस्लाम के शुरूआती काल में उमय्यद ख़िलाफ़त का एक अरब सिपहसालार था। उसने महज़ 17 साल की उम्र में भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी इलाक़ों पर हमला करने के लिए भेजा गया था।
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(मोहम्मद बीन कासीम) |
मोहम्मद बिन क़ासिम (Muhammad Bin Qasim) का जन्म सउदी अरब में स्थित ताइफ़ शहर के अल-सक़ीफ़ क़बीले में हुआ था। मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) के पिता कासिम बिन युसूफ़ का जल्द ही देहांत हो गया। इसके बाद कासिम के चाचा हज्जाज बिन युसूफ़ ने जो की इराक़ के गवर्नर थे, उसने ही कासिम को युद्ध और प्रशासन की कलाओं से अवगत कराया और एक बेहतरीन सैनिक के रूप में उसे तैयार किया। उसने हज्जाज की बेटी यानि अपनी चचाज़ात बहन ज़ुबैदाह से शादी कर ली थी।
मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) का विजय अभियान भारतीय उपमहाद्वीप में आने वाले मुस्लिम राज का एक बुनियादी घटना-क्रम माना जाता है। कासिम ने ही सर्वप्रथम भारत पर जजिया कर लगाया था, लेकिन इस कर से बच्चे, अपाहिज, साधु-सन्त, ब्राह्मण एवं महिलाओं को मुक्त रखा गया।
मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) का सिंध पर आक्रमण
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( सिंध आक्रमण का काल्पनिक चित्र) |
710 ई. में इराक के गवर्नर हज्जाज बिन युसूफ़ के आदेश पर मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) ईरान के शिराज़ शहर से 6000 सैनिकों और 3000 ऊँट (जिस पर जरुरत का सारा सामान मौजूद था) के साथ पूर्व की ओर रवाना हो गया। जब वह मकरान पंहुचा तो वहाँ के गवर्नर ने उसे 6000 ऊँट और कई सैन्य दस्ते दे कर के उसकी मदद की। उस समय मकरान पर अरबों का राज था।
मकरान के बाद 711 ई. में उसने सिंध में प्रवेश किया उस समय सिंध पर राजा दाहिर सेन की हुक़ूमत थी। वहाँ उसने देबल की बंदरगाह जो उस ज़माने में सिंध की सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह में शुमार थी उस पर हमला किया वहाँ उसे हज्जाज बिन युसूफ़ द्वारा भेजे गए समुद्री दस्ते की भी मदद मिली। मोहम्मद बिन कासिम ने देबल की बंदरगाह को पूरी तरह से फतह कर लिया।
इसके बाद कासिम ने देबल शहर का रुख किया यहाँ पर देबल शहर के सैनिकों ने जम कर इसका मुकाबला किया। शुरुआती मुकाबले में शहर की फौज अरब फौजों पर भरी भी पड़ रही थी। शहर के बीच एक 120 फिट ऊँचा एक मंदिर था। इस मंदिर में महात्मा बुद्ध समेत कुछ देवताओं की मूर्तियां रखी थीं। इस मंदिर के ऊपर एक झंडा लगा हुआ था।
शहर के लोगों का मानना था जब तक ये झंडा मंदिर पर लहराता रहेगा कोई लश्कर उनके शहर को जीत नहीं सकेगा। उनका मानना था की अरबों के पहले लश्कर इसी वजह से नहीं जीत सके थे लेकिन इस बार शहर में मौजूद एक ब्राह्मण पंडित ने उसे ये राज बता दिया उसने कहा अगर तुम ये शहर जीतना चाहते हो तो मंदिर पर लगा झंडा और गुम्बद तोड़ दो।
इसके बाद मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) ने अपने लश्कर में मौजूद एक बहुत ही माहिर सिपाही को बुलाया और कहा की अगर तुम ये मंदिर तोड़ दो तो मै तुम्हें 10,000 दिरहम दूंगा तो जवाब में उस सिपाही ने कहा की अगर मै 3 पत्थरों से से गुम्बद न तोड़ सका तो मेरे हाथ काट देना। थोड़ी देर बाद ही कासिम के इस सिपाही ने 2 पत्थरों से मंदिर का झंडा समेत गुम्बद को तोड़ दिया।
मंदिर का गुम्बद टूटते ही शहर वालों का हौसला भी टूट गया और वह कासिम के सामने कमजोर पड़ने लगे और अंत में उन्होने मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) के सामने अत्म्सपर्पण कर दिया। और शहर के द्वार अरब फौजों के लिए खोल दिया गया यहाँ मोहम्मद बिन कासिम ने देबल का कैदखाना तोड़ कर सभी अरब कैदओं को आज़ाद करा लिया और शहर में 4000 अरबों को बसा दिया।
इसके बाद आगे बढ़ते हुए कासिम की फौज ने रास्ते में नेरून और सहवान शहरों पर भी अपना कब्ज़ा कर लिया। इन शहरों से मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) ने बहुत से कैदी और खजाना हज्जाज बिन युसूफ़ के पास भेजा और कुछ खजाने का कुछ हिस्सा फौजों में भी बांटा गया। धीरे – धीरे कासिम ने पश्चिमी सिंध के सभी छोटे कबीलों और सुबो को जीत लिया। यहाँ उसे राजा दाहिर से नाराज जाटों और बोद्धो का पूरा सहयोग मिला इनके मिल जाने से अरब फौजों की स्थिति पहले से और भी ज्यादा मजबूत हो गयी।
अब तक राजा दाहिर की तरफ से हमले की कोई कोशिश नहीं की गयी इसकी वजह राजा दाहिर के दरबार में मौजूद अरब थे। उन्होने राजा दाहिर से कह रखा था की वो इस लश्कर का मुकाबला न करे क्योंकि इस लश्कर में बहुत बड़े – बड़े अरब बहादुर मौजूद हैं और लश्कर में मौजूद एक शख्श ऐसा भी है जो खास आपको क़त्ल करने के इरादे से पूरी तैयारी के साथ आया है।
पश्चिमी सिंध पर सफलतापूर्वक कब्ज़ा करने के बाद मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) सिंधु नदी पार कर के रोहड़ी पंहुचा। वहाँ उसका मुकाबला सीधे राजा दाहिर सेन और उनके सैनिकों से हुआ, यहाँ राजा दाहिर खुद हाथी पर सवार होकर जंग के मैदान में था। शुरुआती मुकाबले में राजा दाहिर की फौज अरब फौजों पर भरी पड़ रही थी।लेकिन थोड़ी ही देर में अरबों की सेना ने राजा दाहिर पर वार करना शरू कर दिया।
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(राजा दाहीर) |
अरबों के एक सिपाही का जलता हुआ तीर राजा दाहिर के हाथी को लगा और हाथी जख्मी हालत में सिंधु नदी में कूद गया उसके बाद राजा दाहिर जैसे ही हाथी के पालकी से बाहर निकला वैसे ही अरब लश्करों ने उन पर तीर से हमला कर दिया और राजा दाहिर मारा गया। राजा के मरते ही उसका लश्कर रोहड़ी के किले में भाग गया और किले के दरवाज़े बंद कर लिए इस लश्कर की संख्या करीब 15000 थी।
इस किले में राजा दाहिर की पत्नी रानी बाई भी मौजूद थी जिसके बारे में कहा जाता है के ये राजा की सगी बहन थी जिससे राजा ने शादी की हुयी थी। अब अरब लश्करों ने किले पर हमला किया। रानी बाई ने कई दिनों तक अरब लश्करों से मुकाबला करती रहीं लेकिन जैसे ही अरब लश्करों ने किले की दीवारों को तोड़ दिया वैसे ही रानी बाई किले में मौजूद सभी औरतों के साथ खुद का जौहर (आग के हवाले ) कर लिया। इसके बाद राजा दाहिर का बेटा जयसेना चित्तौड़ की तरफ भाग गया।
पूरे सिंध पर मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) का कब्ज़ा हो गया ब्राह्मनाबाद और मुल्तान को भी कासिम ने जीत लिया। यहाँ से मुहम्मद बिन क़ासिम ने सौराष्ट्र की तरफ भी अपने सैन्य दस्ते भेजे लेकिन राष्ट्रकूटों के साथ उसकी संधि हो गई। उसने बहुत से भारतीय राजाओं को ख़त लिखे की वे इस्लाम अपना लें और आत्म-समर्पण कर दें। उसने कन्नौज की तरफ भी 10000 सैनिकों की एक टुकड़ी भेजी लेकिन कूफ़ा से उसे वापस आने का आदेश आ गया और उसे यह विजय अभियान रोकना पड़ा।
मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad bin Qasim) की मृत्यु
मोहम्मद बिन क़ासिम (Muhammad Bin Qasim) सिंध में अपने अरब साम्राज्य के विस्तार की तैयारी कर ही रहा की इसी दौरान हज्जाज बिन युसूफ़ की मृत्यु हो गई और इसके एक वर्ष बाद ही ख़लीफ़ा अल-वलीद प्रथम का भी देहांत हो गया। इसके बाद अल वलीद का छोटा भाई सुलयमान बिन अब्द-अल-मलिक अगला ख़लीफ़ा बना।
सुलयमान के रिश्ते हज़्ज़ाज़ से बिलकुल भी अच्छे नहीं थे हज़्ज़ाज़ की तो मृत्यु हो ही चुकी थी। उसने फ़ौरन हज्जाज के वफ़ादार सिपहसालारों, मुहम्मद बिन क़ासिम और क़ुतैबाह बिन मुस्लिम, को वापस बुला लिया। और याज़िद बिन अल-मुहल्लब को किरमान, फ़ार्स, मकरान तथा सिंध का नया गवर्नर नियुक्त कर दिया । याज़िद को कभी हज्जाज बिन यूसुफ़ ने बंदी बनाकर काफी प्रताड़ित किया था इसलिए उसने तुरंत मोहम्मद बिन क़ासिम (Muhammad Bin Qasim) को बंदी बनाकर बेड़ियों में डाल दिया।
मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) की मौत की दो कहानियाँ बताई जाती हैं।
फतह-नामे -सिंध किताब (चचनामा) के अनुसार मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) ने राजा दाहिर सेन की बेटियों परिमला और सूर्या को तोहफ़ा में अरब ख़लीफ़ा के पास भेज दिया था। जब वह खलीफा के दरबार में पेश हुयी तो उन्होंने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए खलीफा से कहा कि मुहम्मद बिन क़ासिम (Muhammad Bin Qasim) पहले ही उनकी इज़्ज़त लूट चूका है और अब ख़लीफ़ा के पास भेजा है। यह सुन कर खलीफा नाराज हुआ और मुहम्मद बिन क़ासिम को बैल की चमड़ी में लपेटकर वापस दमिश्क़ मंगवाने का आदेश दे दिया उसी चमड़ी में बंद होकर दम घुटने की वजह से मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) की मौत हो गयी लेकिन जब ख़लीफ़ा को पता चला कि बहनों ने उससे झूठ बोला था तो उसने उन्हें ज़िन्दा दीवार में चुनवा दिया।
ईरानी इतिहासकार बलाज़ुरी के अनुसार अरब का नया ख़लीफ़ा सुलयमान बिन अब्द-अल-मलिक हज्जाज बिन यूसुफ़ का दुश्मन था। उसने हज्जाज के सभी सगे-सम्बन्धियों पर कठोर कार्यवाही की । मुहम्मद बिन क़ासिम (Muhammad Bin Qasim) को भी सिंध से वापस बुलवाकर इराक़ के मोसुल शहर में बंदी बना दिया गया। वहाँ उसपर कठोर व्यवहार और पिटाई के कारण उसने दम तोड़ दिया।
मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) के मौत की अब जो भी कहानी रही हो लेकिन उसको महज 20 वर्ष की आयु में ही अपने खलीफा द्वारा ही मरवा दिया गया। उसकी कब्र भी आज तक अज्ञात है। यह एक तारीखी हकीक़त है कि मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) को फतेह सिंध के साथ ही कत्ल कर दिया गया।
इसका एक राजनैतिक कारण यह भी था की जिस तरह से मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) सिंध पर अपने अधिकार को बढ़ा रहा था और जिस तरह से सिंध के लोगो ने उसे अपना हुक्मरान समझना शुरू कर दिया था उससे खलीफा वलीद बिन अब्दुल मलिक को यह ख्याल आया कि कहीं वह सिंध में अपनी खुद की हुक़ूमत ना कायम कर ले। और इसी दौरान राजा दाहिर की लड़कियों का मामला सामने आ गया तो खलीफा को कासिम को वापस बुलाने का मौका भी मिल गया इसका जिक्र उस दौर में लिखी गयी किताब फतह-नामे -सिंध किताब (चचनामा) में भी मिलता है।
भारत पर अरब आक्रमण के कारण
भारत पर अरबों के आक्रमण का प्रमुख और तत्कालिक कारण यह था की श्रीलंका के राजा द्वारा उमय्यद खलीफा के लिए उपहार ले कर जा रहे 8 समुद्री जहाज़ों को देबल की बंदरगाह पर डाकुओं द्वारा लूट लिया गया। इस जहाज़ में सवार कुछ मुस्लिम औरतों को देबल के कैदखाने में कैद कर दिया गया।
जब इस बात की जानकारी इराक के गवर्नर हज्जाज बिन युसूफ़ को हुयी तो उसने राजा दाहिर को खत लिख कर मुसलमान कैदी रिहा करने और लुटे गए माल का जुर्माना भरने का आग्रह किया। लेकिन जवाब में राजा दाहिर ने लिखा की वे समुद्री डाकू उसकी पहुँच से बाहर हैं और उन पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है लिहाज़ा मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकता। राजा के इस इनकार करने के बाद ही हज्जाज बिन यूसुफ़ ने सिंध पर हमला करने का निर्देश दे दिया।