तवाफ़ की हिकमत रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह कहते हुए फरमा दी कि "बेशक बैतुल्लाह का तवाफ सफा और मरवा की सई और जुमेरात को कंकरिया मारना अल्लाह का जिक्र करने के लिए मुकर्रर किए गए हैं"।
बैतुल्लाह के इर्द-गिर्द चक्कर लगाकर तवाफ करने वाला व्यक्ति दिल से अल्लाह की ताजीम और महानता बयान करता है। चुनांचे तवाफ करने वाले का पैदल चलना, हजरे अस्वद का बोसा देना या इसतलाम करना, रुक्ने-यमानी का इस्तलाम और हजरे अस्वद की तरफ इशारा भी अल्लाह का जिक्र है। क्योंकि ये भी अल्लाह की इबादत में शामिल है।
हजरे अस्वद को चूमना कैसा है
जिक्र का साधारण अर्थ अल्लाह की तमाम इबादत और आराधना को कहा जाता है। जुबान से अदा होने वाली तकबीर और दुआ वगैरह के मुतालिक तो स्पष्ट है कि ये अल्लाह का जिक्र हैं जिसका मकसद अल्लाह की महानता बयान करना है, लेकिन हजरे अस्वद का बोसा देना भी इबादत है वो इस तरह कि इंसान उस स्याह अथवा काले पत्थर को बोसा सिर्फ इसलिए देता है कि यह भी अल्लाह की बंदगी और ताजीम है और वह ऐसा करके अपने नबी का अनुसरण करता है। जैसे कि अमीरुल मोमिनीन उमर बिन खत्ताब रजि अल्लाह अन्हु से साबित है कि जिस वक्त उन्होंने हजरे अस्वद को बोसा दिया तो फरमाया
"मैं जानता हूं कि तू एक पत्थर है, तू नफा या नुकसान नहीं दे सकता अगर मैंने रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तुझे बोसा देते हुए ना देखा होता तो मैं तुझे कभी बोसा ना देता"।
कुछ जाहिल लोग यह समझते हैं कि हजरे अस्वद को बोसा देने का मकसद बरकत को हासिल करना है तो उसकी कोई दलील नहीं है इस वजह से इस नजरिए को गलत और बातिल समझा जाएगा।
कुछ पागल और दोज़खी लोग यह कहते हैं कि बैतुल्लाह का तवाफ भी ऐसा ही है जैसे वलियों की कब्रों का तवाफ किया जाता है और यह बुत परस्ती में आता है तो वो इसके जरिए अपनी गंदी मानसिकता का सबूत देते हैं, क्योंकि अहले ईमां बैतुल्लाह का तवाफ सिर्फ इसलिए करते हैं कि अल्लाह ताला ने उसका हुक्म दिया है और जो काम अल्लाह के हुक्म से हो तो वह काम इबादत होता है।
इसकी मिसाल के लिए कुरान की इस वाकये पर गौर करें कि अल्लाह के अलावा किसी और को सजदा करना बहुत बड़ा शिर्क है लेकिन जब अल्लाह ताला ने फरिश्तों से कहा कि आदम को सजदा करें, तो ये सजदा था तो आदम को लेकिन इबादत अल्लाह की थी। इसलिए उस वक्त जिसने सजदा ना किया वह जहन्नामी कहलाया और अल्लाह ताला ने सजदा ना करने वाले इब्लीस को मरदूद करार दिया और उस पर लानत भेजी।
तवाफ़ एक इबादत
इसलिए बैतुल्लाह का तवाफ एक बहुत बड़ी इबादत है, ये हज का हिस्सा भी है और हज इस्लाम का हिस्सा है। यही वजह है कि जब मुताफ में ज्यादा भीड़ ना हो तो तवाफ़ करने वाले के दिल में खास लज्जत और अल्लाह का क़ुर्ब महसूस होता है, इस तरह स्पष्ट हो जाता है कि तब आप की अहमियत और उसकी महत्वता बहुत ऊंचा स्थान रखती है। बाकी अल्लाह सबसे ज्यादा जानने वाला है।
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