क़ुरआने करीम हिफ़्ज़ (कण्ठस्थ) करना एक इबादत है और इस इबादत के जरिए हाफिज व्यक्ति अल्लाह को खुश करना चाहता है और आखिरत में सवाब कमाना चाहता है अगर हाफिज कि यह नियत ना हो तो फिर उसको कुछ भी बदला नहीं मिलेगा और उस इबादत को गैररुल्लाह यानी अल्लाह के अलावा किसी को खुश करने की वजह से हाफिज व्यक्ति गुनहगार होगा।
हाफिज ए कुरान को चाहिए कि क़ुरआने मजीद को कण्ठस्थ कर उसके एवज में दुनिया के फायदे की तमन्ना ना करें क्योंकि कुरान मजीद को याद करना ऐसी चीज नहीं है कि जिसके बदले में मार्केटिंग की जाए बल्कि एक इबादत है जो वो अल्लाह ताला के लिए करता है।
हाफिज़ ए क़ुरआन की दुनिया में अहमियत
अल्लाह ताला ने हाफिज ए कुरान को दुनिया और आखिरत में बहुत ऊंचा मकाम और ओहदा दिया है उसमें से कुछ निम्नलिखित हैं।नमाज़ की इमामत के लिए हाफिज ए कुरान को दूसरों पर तरजीह दी जाएगी।
अबू मसूद अंसारी रजि अल्लाह अन्हु कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो वाले वसल्लम ने फरमाया लोगों की इमामत वह करवाए जो सबसे ज्यादा कुरान पढ़ने वाला हो (यानी हाफिज हो) अगर वह उसमें यकसां हों तो फिर जो सबसे ज्यादा सुन्नत का इल्म रखने वाला हो, अगर वह इल्मे हदीस में भी एक जैसे हो तो फिर जो सबसे पहले हिजरत करके आया हो, अगर हिजरत में भी बराबर हों तो फिर जो सबसे पहले इस्लाम लाया हो, कोई भी शख्स सुल्तान की मौजूदगी में सुल्तान की इमामत ना करवाए और ना ही उसकी खास मसनद पर बैठे (मुस्लिम 673)
अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह अन्हु कहते हैं कि जिस वक्त अव्वलीन मुजाहिर क़बा के करीब उसबा जगह पर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि सल्लम की आमद से पहले आए तो उनकी इमामत सालिम मूली अबू हुजैफा करवाते थे क्योंकि आप को सबसे ज्यादा कुरान मजीद याद था। (बुखारी 660)
अगर मजबूरी की बिना पर हाफिज के साथ किसी और को कब्र में दफन करना पड़े तो किब्ले की जानिब हाफिज को और उसके पीछे दूसरी मैयत को दफन करेंगे।
चुनांचे जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि अल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम गज़वा अहद के जान निसारों को एक एक कपड़े में कफन देते और फिर फरमाते: इनमें से कुरान किसको ज्यादा याद था फिर जब किसी के बारे में इशारा किया जाता तो उसे लहद। (क़ब्र) में पहले उतारते और फिर फरमाया - मैं कयामत के दिन इन सब का गवाह हूं। आपने जांनिसारों को उनके खून के साथ ग़ुस्ल दिए बगैर दफ्न किया और उनकी नमाजे जनाजा अदा नहीं फरमाई ।
(बुखारी 1278)
अगर सल्तनत तो और सरबराही संभालने की सलाहियत हो तो हाफिज ए कुरान को तरजीह दी जाएगी।
आमिर बिन वासला कहते हैं की नाफे बिन अब्दुल हारिस सैय्यदना उमर रजि अल्लाह अन्हु को उस्फ़ान जगह पर मिले, उमर रजि अल्लाह अनु ने उन्हें मक्का का गवर्नर मुकर्रर किया हुआ था तो आपने उनसे पूछा अहले वादी पर किसे सरबराह मुकर्रर किया गया है तो नाफ़े ने कहा इब्न अब्ज़ी को ! उमर ने कहा: वह कौन है ना फिर ने कहा वह हमारे गुलामों में से एक गुलाम है। उमर ने कहा: तुमने गुलाम को उनका सर बराह बना दिया है? नाफ़े ने कहा: वो कुरान का कारी है (यानी कुरान का हाफिज है) और उन्हें फ़राएज़ (वारिसत) का इल्म में भी है। इस पर उमर ने कहा: तुम्हारे नबी ने (सच) कहा है: बेशक अल्लाह ताला इस किताब की वजह से कुछ लोगों को इज्जत से नवाजता है और दूसरों को ज़िल्लत से । (मुस्लिम 817)
आख़िरत में हाफिज़ का मकाम
हाफिज ए कुरान का जन्नत में ठिकाना वहां होगा जहां वह आखिरी आयत पढ़ेगा।अब्दुल्लाह बिन अमरू रजि अल्लाहु अन्हुमा नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि: साहिबे कुरान से कहा जाएगा कि पढ़ते जाओ और चढ़ते जाओ नेज़ उस तरह ठहर-ठहर कर पढ़ो जैसे तुम दुनिया में पढ़ते थे क्योंकि तुम्हारा ठिकाना वहीं होगा जहां तुम आखिरी आयत पढ़ोगे (तिर्मज़ी शरीफ 2914) इमाम तिर्मज़ी ने इसे हसन सही करार दिया है ।
हाफिज ए कुरान फरिश्तों के हमराह अपने घरों में होगा।
आयशा रजि अल्लाह अनुपमा से रिवायत है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो वाले वसल्लम ने फरमाया: उस शख्स की मिसाल जो कुरान पढ़ता है और कुरान का हाफिज भी है तो वह नेक मोहर्रर फरिश्तों के हमराह होगा, और जो शख्स कुरान पढ़ता है लेकिन कुरान पढ़ना उसके लिए मुश्किल हो जाता है तो उसके लिए दोहरा अज्र है। ( बुखारी 4653, मुस्लिम 798)
अबू हुरैरा रजि अल्लाह अनु कहते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहो वाले वसल्लम ने फरमाया: कुरान करीम कयामत के दिन आकर कहेगा परवरदिगार इसे मुज़य्यन फरमा दे, तो उसे मुअज़्ज़िज़ ताज पहनाया जाएगा। फिर क़ुरआन कहेगा या रब मजीद मुज़य्यन फरमा दे, तो उसे फिर मुकर्रम लिबास पहनाया जाएगा। फिर कुरान कहेगा, या रब ! इससे राजी हो जा, तो उसे कहा जाएगा: पढ़ता जा चढ़ता जा और हर एक के पढ़ने पर उसका हुस्न दोबाला होता जाएगा। (तिर्मज़ी 2915)
कुरान पढ़ने वाले के लिए कुरान अल्लाह ताला के यहां शफ़ाअत करेगा।
अब्बू अमामा बाहिली रजि अल्लाह अनुभव कहते हैं कि मैंने रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि सल्लम से सुना आप फरमा रहे थे कुरान पढ़ो क्योंकि यह कुरान अपने पढ़ने वालों के लिए रोजे कयामत शिफारशी बनकर आएगा। तुम ज़ाहिरअवीन यानी सूरह बकरा और आले इमरान पढ़ो ये रोजे कयामत आएंगी गोया कि यह दो बादल हैं या दो सायबान हैं जो उड़ने वाले दो परिंदो के झुंड हैं जो अपने पढ़ने वालों के लिए तकरार करेंगी। तुम सूरह बकरा की तिलावत करो क्योंकि सूरह बकरा की तिलावत बाइसे- बोलो बरकत है उसे छोड़ना बाइसे-हसरत है और जादूगर उसका मुकाबला नहीं कर सकते (मुस्लिम 804)जबकि हाफिज ए कुरान के रिश्तेदारों और औलाद के बारे में एक दलील मिलती है कि हाफिज ए कुरान के वालिदैन को दो लिबास पहनाए जाएंगे जिनकी कीमत दुनिया-ओ- माफीहा भी नहीं है, इसलिए कि हाफिज ए कुरान के माता पिता ने अपने बच्चे की खूब मेहनत के साथ परवरिश की और उसे तालीम दिलवाई चाहे हाफिज ए कुरान के वालिदैन अनपढ़ ही क्यों ना हो अल्लाह ताला फिर भी उनकी इज्जत अफजाई फरमाएगा, लेकिन अगर कोई अपने बच्चे को कुरान ए मजीद हिफ़्ज़ करने से रोकता होगा तो वह महरूमों में शामिल होगा।
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