अस्सलामु अलैकुम,
इस्लाम एक मजहब, जिसकी बुनियाद ही इल्म पर रखी गई.
हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को 40 साल की उम्र में नुबुअत दी गई, गार ए हिरा पर जब उनको नुबुवत दी गई तो जिब्रइल अलैहिस्सलाम ने आकर सबसे पहले उन्हें कहा की 'इकरा' यानी पढो , इसका मतलब इस्लाम की पहली आयत ही इल्म थी. तो आपको क्या लगता हे ये मजहब में तालीम ओ इल्म के बारे में कुछ नहीं होगा.
इस्लाम के शुरुआत के दौर से ही इस्लाम में इल्म यानि एजुकेशन के बारे में सख्ती से कहा गया हे. मस्जिद अल नबवी में शुरुआत के दौर में मदरसे लगवाए जाते थे. जो लोग नए इस्लाम में आते उन्हें पहले पढाया जाता था. क्युकी इस्लाम की बुनियाद ही इल्म पर हे.
इस्लाम में इमान के बाद सबसे पहली चीज़ इल्म को माना जाता हे, क्युकी अगर इल्म होगा तो ही आप आगे उस इल्म पर अमल करते हो. अगर आपको नमाज़ के बारे में इल्म हे की नमाज़ के क्या फायदे हे और नमज्ज़ न पढने पर क्या वईद हे तभी आप नमाज़ पढोगे. अगर जकात के बारे में इल्म होगा तभी आप जकात निकालोगे, इसी तरह हर अमल के बारे में और उसके नफे नुकशान आपको इल्म होगा तभी आप उस आमाल को करोगे या नहीं करोगे.
सिर्फ इस्लामी इल्म ही नहीं इस्लाम के अन्दर दुनयावी इल्म के बारे में भी हुक्म किया गया हे. 7वि सदी से लेकर 15वि सदी तक इस्लामी हुकूमत (मिडल ईस्ट) ही दुनियामे गणित और विज्ञान मरकज़ माना जाता था. इस दौरान मुसलमानों द्वारा पॉइंट कैमेरा, दूरबीन, अल्गोरिधम, अलज़ेबरा, जेसी अगणित शोध की गई. अवकाश ज्ञान में भी मुसलमानों का योगदान महत्वपूर्ण मन जाता हे. हर शहर में एक यूनिवर्सिटी हुआ करती थी, वहा इस्लामी ज्ञान के साथ साथ दुनयावी ज्ञान भी दिया जाता था, मुस्लमान शाशको के दरबार में उन आलिमो का रुतबा होताथा, उनके लिए अलग से पूरा बजट दिया जाता था. इस दौर को इस्लामिक सुनहरा दौरकहा जाता हे.
आज के विज्ञानिक और विचारक भी मानते हे की अगर वो समय पर मुसलमानों ने इतना योगदान ना दिया होता तो आज हम ये दौर नहीं देख पाते. और अगर मुसलमान शाशको द्वारा विज्ञानं और गणित के लिए उन आलिमो को मदद नहीं की जाती तो आज हम 500 साल पीछे चल रहे होते.
बाद में मुस्लमान इल्म से हट कर आमल करने लगा. सलिबियो ने मुसलमानों को सिर्फ जंगो में मशरूफ रखा, और मुसलमानों का वो सुनहरा दौर ख़त्म होने लगा, आज पूरी दुनिया में मुसलमानों में कोलेज ड्रोपआउट स्कोर सबसे ज्यादा पाया जाता हे.
फ़िलहाल के दौर में हालाकी मुसलमानों ने हर तरफ कमियाबी हासिल की हे, अभी हाल ही में हमारे वहा UPSC का रिसल्ट सामने आया जिसमे पुरे हिंदुस्तान में पास होने वाले स्टूडेंट में से मुस्लिम युवको की संख्या 5% रही, पिछले वर्ष ये 4% थी, ये देख कर पता चलता हे की मुसलमान युवको में अब पढने का शौख बढ़ता जाता हे. हमारे यहाँ एक बात अक्सर सुनी जाती हे की पढने से क्या होगा मुसलमान को कोन नोकरी देगा. लेकिन अब आप ही बताए 50% लाकर इंटरव्यू में जाओगे तो आपको कोन नोकरी देगा ? उसमे दोष बच्चो का नहीं उनके माँ बाप का हे, अगर पढाई के टाइम हमारा बच्चा पढाई न करके खेलकूद करता हे तो क्या हम हमारे बच्चे को पढाई के लिए कहते हे ? महेनत करके ज्यादा अंक लाओ , नोकरी तो जख मारकेदेगा.
लेकिन फ़िलहाल मुसलमान बच्चे महेनत से पढ़ते हे, अच्छे अंक भी लाते हे, उसका ताज़ा उदहारण UPSC का रिज़ल्ट हे.
तो आप सबसे मेरी आजिजाना गुज़ारिश हे की आपके आसपास या घर में अगर कोई बच्चा पढता नहीं तो उसको पढने के लिए कहो. हो सके तो उसको पैसे से मदद भी करो , और अगर मदद नहीं कर सकते तो कम से कम अपने आसपास किसी NGO या संस्था से कहो की उनकी मदद करो, अगर इल्म नहीं होगा तो हमारी नसले बर्बाद हो जाएगी.
मेने इस ब्लॉग के जरिए सिर्फ इस्लाम और इल्म के बिच का रिश्ता बताया हे. अगर मुझसे कोई भूल या कोताही हुई हो तो अपना छोटा भाई समजकर माफ़ कर देना, इस सिरीज़ का अगला पार्ट भी में लिखूंगा , इंशाअल्लाह . लिहाजा आप हमारी मदद करते रहिए.
मेरे इस ब्लॉग से किसीके दिल को ठेस पहुची हो तो में दिलसे माफ़ी मांगता हु, मेरा उद्देश्य किसी की भावनाओ को ठेस पहोचाना नहीं पर आप तक सच पहुचाना था, अगर कोई भूल हुई हो तो अपना छोटा भाई समजकर माफ़ कर देना.
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