पहनावे और दाड़ी के चलते नही मिली थी नौकरी, अकेले दम पर खड़ा कर दिया करोड़ो का कारोबार
इरशाद सिद्दीकी बिहार के रहने वाले हैं। उनका ताल्लुक़ बिहार के एक संपन्न परिवार से हैं। उनके पिता मेडिकल स्टोर चलाते हैं। बिहार से बीबीए करने के बाद इरशाद आगे की पढ़ाई करने के लिए अपने चचेरे भाई के साथ 1998 में मुंबई आ गए थे। मुंबई के एक कालेज में उन्होंने कंप्यूटर में डिप्लोमा के लिए दाखिला लिया और अपनी पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई के दिनों के दौरान इरशाद को मुंबई शहर के जीवन ने आकर्षित किया कि वे बिहार वापस ना जा सके। उनके पिता उन्हें वापस घर बुलाने चाहते थे। सिद्दीकी ने आर्क कंप्यूटर फर्म में नौकरी ज्वाइन की, लेकिन 9 महीनों के बाद वहां नौकरी छोड़ दी। उसके बाद उन्होंने अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए एक इंटरनेट कैफे में काम करना शुरू किया।
इरशाद सिद्दीकी Two Circles.net से बातचीत के दौरान बताते हैं कि, ‘उन्होने कंप्यूटर फर्म में नौकरी इसलिए छोड़ दी थी क्योंकि जो कुछ भी उन्होंने पढ़ा था उसके अनुसार उनको वहां काम नहीं मिला था’। सिद्दीकी कहते हैं फिर आगे उन्होंने अपना खर्चा निकालने के लिए एक इंटरनेट कैफे में कुछ दिन काम किया। कैफे में काम करने के दौरान कोका-कोला में नौकरी के लिए आवेदन किया और उन्हें नौकरी कोका-कोला में नौकरी भी मिल गई। नौकरी के पश्चात् सब कुछ अच्छा चलने लगा और उन्हें भी नौकरी में आनंद आने लगा।
इरशाद बताते हैं कि,’कोका कोला में नौकरी करने के दौरान उन्हें कैडबरी से नौकरी का अवसर प्राप्त हुआ और उन्होंने कैडबरी ज्वाइंन कर लिया। कैडबरी में नौकरी के दौरान उन्होंने कैडबरी की सेल को बहुत अधिक मात्रा में बढ़ाया साथ ही उनके सुझाव पर कैडबरी ने मुबंई के बिग बाज़ार में अपने स्टोर शुरू करे और कैडबरी कंपनी को बहुत मुनाफा हुआ’। इरशाद सिद्दीकी को कैडबरी का ज़ोनल हेड भी बनाया गया।
इरशाद सिद्दीकी बताते हैं कि उन्होंने यह नौकरी भी छोड़ दी और और फिर वे आध्यात्मिक जीवन से जुड़ गए’। इस्लाम धर्म से भटके हुए मुसलमान को इस्लाम की तरफ़ लाने का काम करने लगें, लोगों में इस्लाम धर्म के पैगम्बर मुहम्मद साहब की शिक्षाएं बताने लगे और प्रचार प्रसार करने लगे। इरशाद कहते हैं कि,’अध्यात्मिक जीवन से जुड़ने के बाद काफ़ी चीजें बदल गई थी और साथ ही उन्हें जीवन से जुड़े उद्देश्य भी प्राप्त हुए उनमें से एक यह था पैगम्बर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं का सही मतलब क्या हैं।
इरशाद सिद्दीकी बताते हैं कि अध्यात्मिक जीवन से जुड़ने के बाद उनकी जिंदगी की जीवन शैली में काफ़ी बदलाव आए जैसे कि चेहरे पर दाढ़ी रखना और कुर्ता पजामा पहनना और खासकर सफेद रंग का। वे बताते हैं कि कारपोरेट्स कंपनी में नौकरी के लिए एक ड्रेस कोड होता हैं और उन्हें उनके हुलिए की वज़ह से नौकरी नहीं मिली और वे आध्यात्मिक जीवन से जुड़ने के बाद थोड़े समय तक बेरोजगार रहें।
इरशाद सिद्दीकी बताते हैं कि फिर उन्होंने अपना कारोबार शुरू करने के बारे में सोचा और उसी के लिए उन्होंने अपने पिता से 5 लाख रुपए मांगे, लेकिन उनके पिता ने पैसे देने से इंकार कर दिया। इरशाद कहते हैं कि फिर उन्होंने अपने एक दोस्त आज़ाद से 12 हज़ार रुपए उधार के तौर पर लिए और एक जगह किराए पर लेकर ‘कासमस’ बैग की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट खोलकर शुरुआत की। वे बताते हैं कि कासमस की शुरुआत में सिर्फ दो कारीगर और मात्र तीन मशीन थी और उन्हें प्रोडक्शन की ज़्यादा जानकारी भी नहीं थी।
इरशाद सिद्दीकी बताते हैं कि पहला आर्डर उन्हें एक मोबाइल फोन कंपनी से मिला था वो भी तब जब उन्होंने मोबाइल कंपनी को मार्किट रेट से 40 रुपए कम पर बैग देने की बात कही। वे बताते हैं कि पहले आर्डर पर उन्हें 10 रुपए प्रति बैग की बचत हुई थी। वे कहते हैं उन्होंने एक मार्किट में आने के लिए एक रणनीति बनाई कि उच्च गुणवत्ता के बने बैग को कम क़ीमत पर बेचा जाए, इसके जरिए कम से कम खर्चों के साथ एक अच्छी बिक्री को बढ़ाने में मदद मिलेगी।
वे बताते हैं कि 2008 में उनके दोस्त रियाज़ ने एक बैग मैनुफैक्चरिंग कंपनी की नौकरी को छोड़कर उनकी मदद करने को कासमस में शामिल हो गया। रियाज़ ने काफ़ी मदद की , कंपनी की रिटेल मार्केटिंग को बढ़ाने में क्योंकि उसको काफ़ी अनुभव था रिटेल मार्केटिंग का। इरशाद कहते हैं कि धीरे धीरे रियाज़ रिटेल मार्केट देखने लगा और वो स्वयं कारपोरेट्स आर्डर से संबंधित काम को देखने लगे। इससे कंपनी की सेल और कंपनी की आउटरीच बढ़ने लगी।
मोहम्मद इरशाद सिद्दीकी बताते हैं कि 2010 में उन्होंने अपने प्रोडक्ट को आनलाइन लांच किया। वे बताते हैं बैग की ई कामर्स को पूरा करने के लिए उन्होंने कारीगरों और प्रतिदिन बैग बनाने की क्षमता को बढ़ाया। आनलाइन के जरिए कासमस बैग की पब्लिसिटी होने लगी। और उनकी कंपनी की सेल मात्र चार सालों में 5 लाख से 25 लाख हो गई।
वे बताते हैं कि कंपनी 4 से 5 तरह के बैग बनाती हैं जैसे छोटी यात्रा के लिए डफ़ली बैग, लंबी यात्रा के लिए ट्राली बैग, स्लिंग बैग, जिम बैग, स्कूल बैग, लेपटॉप बैग आदि। उनके द्वारा बनाए बैग कपड़े के बने होते हैं। वे बताते हैं कि बैग बाजार में पहुंचने से पहले 40 चेकप्वाइंट से गुजरता है। जिससे अगर बैग में कोई कमी तो वो दूर हो जाए। वे बताते हैं कि उनके द्वारा बनाए बैग 100% मेड इन इंडिया होते हैं, बैग पर एक साल की वारंटी होती हैं और साथ ही बैग फैशन की कार्यशैली से पूर्ण होते हैं।
बताते हैं कि आगे आने वाले समय मे वे ‘कासमस रिटेल स्टोर’ के तहत 100 अधिक आबादी वाले शहरों में रिटेल स्टोर खोलने का विचार कर रहे हैं। वे बताते हैं हाल ही में पूर्ण रूप से डिजिटल स्पेस में आए लाकडाउन तक वे सिर्फ अमेज़न पर ही थे। तभी कंपनी की एक ई कामर्स वेबसाइट लांच की और सोशल मीडिया के पेजों के साथ एक नई ब्रांडिंग शुरू की जिससे उनकी एक आकर्षक मार्केट बन सके।
मोहम्मद इरशाद सिद्दीकी बताते हैं कि वर्तमान में उनकी कंपनी की धारावी में पांच मंजिला मैनुफैक्चरिंग यूनिट हैं, जहां लगभग 150 से ज्यादा कारीगर काम करते हैं। वे बताते हैं कि एक दिन में 30 हज़ार से लेकर 35 हज़ार तक बैग का उत्पादन करते हैं। बताते हैं कि आज कासमस बैग एक जाना पहचाना ब्रांड बन चुका हैं, कासमस की मार्किट में अपनी अलग पहचान हैं एक अलग नाम हैं। इरशाद बताते हैं कि पिछले 5 सालों में उनकी कंपनी लगभग 8 लाख ग्राहकों तक पहुंची हैं। वर्तमान में कासमस का सालाना कारोबार 35 करोड़ का हैं।
इरशाद कहते हैं कि उन्होंने कोका कोला और कैडबरी में चार साल तक काम किया था, वहां से उन्होंने बहुत कुछ सीखा हैं। इरशाद कहते हैं कि यदि कोई अपना काम ईमानदारी से करता हैं या ईमानदारी से प्रयास करता हैं तो वो किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकता हैं।भारत में हर क्षेत्र में ढ़ेरों अवसर मौजूद हैं। मेहनत से सब कुछ मुमकिन हैं जो आज वो यहां तक पहुंचे हैं , काम के प्रति मेहनत और लगन से पहुंचे हैं।
(Two circle .net से साभार)